कर्मा एकादशी व्रत

 यह कर्मा एकादशी का व्रत भाद्रपद महीने में एकादशी के दिन किया जाता है| सबसे पहले स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा की तैयारी की जाती है फल, धूप, दीप, कलावा भोग आदि का प्रबंध किया जाता है, झूर लाया जाता है अपने छत पर या आंगन में साफ-सफाई करके झुर को स्थापित करते हैं| गोबर का गौरी गणेश बनाते हैं और पूजा शुरू करते हैं| 

 कर्मा एकादशी व्रत भाई के लिए किया जाता है| एकादशी व्रत के दिन गौ माता के गोबर से, जिस गौ माता के बच्चे होते हैं उसी गाय के गोबर से गौरी-गणेश बनाते है | एक लंबा सा घास होता है जिसे झुर के नाम से जानते हैं| उसकी पूजा सायं काल में की जाती है| फल,फूल, रोली, अक्षत, कर्मी का साग, धूप, दीप, सिंघाड़े का आटा का हलवा आदि चढ़ा  कर  अपने कर्म तथा भाई के धर्म की रक्षा के लिए  कामना की जाती है|भाई के दीर्घायु के लिए बहन सच्चे मन से पूजा याचनाकरती है और क्षमा याचना की जाती है| कर्मा व्रत के कथा सुनी जाती है और पंडित को दान दक्षिणा दिया जाता है|

 स्त्रियां मिलकर के भजन गाती हैं गंगा मैया का भजन, भाई का भजन |पूजा खत्म करके अपने घर आने के बाद चावल बनाया जाता है और थोड़े ठंडी हो जाने के बाद उसमें पानी डाल दिया जाता हैऔर उसे अच्छा से सुरक्षित रख दिया जाता हैसाथ में कर्मी का साग बनाकर रखते है,दहीभी साथ में रखते है| और अगले दिन झुर और गौरी-गणेश का किसी नदी या तालाब में ले जाकर के विसर्जन किया जाता है उसके बाद घर आकर के स्नानादि करके पूजा किया जाता है| पूजा करके व्रत खोला जाता है| कर्मी का साग और पानी वाला भात और दही खा कर के व्रत खोला जाता है|

भाद्र पद मास के शुक्ल पक्ष में करमा एकादशी तिथि को केवल उपवास मात्र से स्त्रियां सब पापों से मुक्त हो जाया करती हैं| आप अपने कर्म तथा भ्राता के धर्म के प्राप्ति के लिए झुर देव की स्थापना करे और पूजन  करें| विश्वामित्र जी बोले इस व्रत का एक वृतांत मैं सुनाता हूं| आप लोग ध्यान देकर सुने- पहले सतयुग में बृज शर्मा  के 2 पुत्र थे उनका नाम कर्म और धर्म था| कुछ समय बीतने के बाद  बृज शर्मा स्वर्ग को प्राप्त हुए | और कर्म-धर्म दोनों भाई घर का कार्य देखने लगे| धर्म के स्त्री सुंदर स्वभाव वाले तथा पतिव्रता   धर्म  का पालन करने वाली थी| और कर्म की स्त्री कर्कश तथा नित्य प्रतिदिन झगड़ा करने  वाली थी | धर्म  की  स्त्री प्रत्येक वर्ष कर्मा एकादशी का व्रत किया करती थी |और  झूर  देवता  का पूजन किया करती थी| झुर का पूजन करने के बाद ऋतु फल खाती थी| दूसरे दिन प्रातः काल नित्य कर्मों से निवृत्त होकर दही, कर्मी का साग, और बासी भात से पारण किया करती थी| इस व्रत के प्रभाव से सभी प्रकार के विकार नष्ट हो जाते हैं |और मृत्यु लोक में सभी सुखो को भोगकर अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है| कर्म की कर्कश स्त्री कभी भी व्रत नहीं करती |तथा सर्वदा भात बनाकर गर्म मार[भात का रस ] को गंदे जगह पर फेंक दिया करती थी |,गर्म पानी या गर्म मार नाली या गंदी जगहों पर नही फेकना चाहिएं |क्योकि इसके वजह से कर्म देवता नाराज होकर घर छोड़कर भाग जाते है| जिसकी वजह से राजा कर्म के जीवन में अनेकों प्रकार के कष्टों और दुखों का सामना करना परा उनकी साडी सम्पति नष्ट हो गया |तब किसी ब्राह्मण ने कर्म को बताया की तुम्हारी पत्नी गर्म मार को गंदी जगह पर फेक दिया करती थी| जिसकी वजह से तुम्हारे कर्म देवता नाराज होकर तुम्हारे घर से चले गये है |तब राजा कर्म ने अपने कर्म को ढूंढने के लिए जंगल में प्रस्थान किया | रास्ते में राजा अपने मित्र के यहां ठहरे | किंतु वहां भी उनकी विपत्ति पहुंच गई| चोरों ने उनके मित्र का सारा धन चुरा लिया, और राजा वहां से भी  प्रस्थान कर गए | आगे रास्ते में एक आम का वृक्ष फल ,फूल से  संपन्न देखा तथा लेकिन उस पर एक भी पक्षी नहीं थी | उसके फलों में अनेकों कीड़े लगे थे| राजा वहां से भी आगे के लिए प्रस्थान किए राजा |अपने कर्म को ढूंढते हुए जा रहे थे तभी एक गौ और उसके बछरे को बेचैनी से घूमते हुए देखा| और पूछा तुम कर्म को जानती हो गौ माता ने कहा मैं कर्म को नहीं जानती |राजा व्याकुल होकर अपने जीवन से निराश होकर बहुत गर्म स्वांस छोरते हुए जमुना के तट पर गिर पड़े| तभी ऋषि के स्वरूप बनाकर उनका कर्म बोला- इधर आओ और उनका दाहिना हाथ पकड़कर जमुना में प्रवेश कर गए| वहां जाकर राजा ने कहा हमारे घर को छोड़कर मेरे कर्म देव ना जाने कहाँ चले गए हैं| इसी कारण से मेरी संपूर्ण संपत्ति नष्ट हो गई है |यह सुनकर कर्म देव राजा से बोले तुम घर जाकर भक्ति- भाव के साथ कर्मा एकादशी का व्रत करो |इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे सभी कष्ट दूर हो जाएगे |और तुम उत्तम सिद्धि को प्राप्त करोगे पुत्र पौत्र के साथ तुम्हारे सभी मनोरथ पूर्ण होंगे |तथा झूर पूजा भक्ति भाव से पूर्ण करो सभी पापों से मुक्त होकर मरने के पश्चात तुम परम पद स्वर्ग को प्राप्त करोगे |जो इस वृत्तांत को श्रवण करेगा ,तथा भाद्रपद मास में झुर देव का पूजन करेगा अंत में  परम गति को प्राप्त करेगा |राजा ने पूछा हे प्रभु मैंने वन में एक गाय और वृक्ष देखा वह गाय और वृक्ष कौन थे |वह गाय कौन थी, वह वृक्ष कौन था, ऋषि बोले- हे राजा वह वृक्ष पहले जन्म का विद्वान पंडित था | किंतु शास्त्र में निपुण होकर भी विद्यार्थियों को विद्यादान नहीं दे रहा था| और जो तुमने गौ और बछड़ा को देखा वह पृथ्वी है उसने पहले किसानों के बीज को चुराया था| इसलिए उसका बछड़ा उसका दूध नहीं पीता है यह सब उनके कर्म के फल है | कर्म देवता यह कहते हुए अंतर्ध्यान हो गए| तो राजा ने भी घर आकर कर्म एकादशी का व्रत किया| और परम गति को प्राप्त किया इसलिए आप लोग भी कर्म शर्मा के सामान  झुर  का पूजन करें और कर्म एकादशी का व्रत रखें इस व्रत को करने से मनुष्य परम गति को प्राप्त करता है तथा सुख समृद्धि पाता हैं

Leave a Comment