छठ पूजा के इस पावन व्रत में निभाए जाने वाले नियम को जाने इस व्रत में क्या ना करें: –
1 सोमवती अमावस्या के दिन पूरे घर की अच्छे से साफ-सफाई कर ले और घर में तामसिक भोजन बनाना बंद कर दें| लहसुन प्याज कुछ ना बनाएं| सात्विक भोजन स्वस्थ भोजन बनाएं| अमावस्या के ठीक बाद गोवर्धन पूजा पड़ती है उस दिन से ही पवित्रता का ध्यान रखना बहुत ही जरूरी होता है क्योंकि गोवर्धन पूजा के दिन से ही गेहूं चुनना या सामान खरीदना शुरू हो जाता है|
2 सोने के लिए बिछावन कंबल धो ले उसे साफ कर ले ध्यान रहे पलंग पर नहीं सोना चाहिए| धरती पर ही बिछावन बिछाकर आराम करें|
3 इस व्रत में काले रंग बिल्कुल शामिल ना करें| काले रंग के कपड़े न पहने और ना ही और कोई वस्तु ले|
4 इस व्रत में सूतक लगे कुछ भी हो जाए इस व्रत को पूरा किए बिना नहीं छोड़ना है| किसी भी हाल में इस व्रत का शुरुआत हो चुका है तो पूरा करना बहुत जरूरी है|
इस व्रत में बहुत ध्यान से सारे कार्य करने होते हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस पूजा में गलती की सजा तुरंत भुगतनी पड़ती है| यह बहुत ही पावन पर्व है इस व्रत को बड़ी निष्ठा से किया जाता है| इसकी तैयारी गोवर्धन पूजा के दिन से ही शुरू हो जाती है| गेहूं को साफ किया जाने लगता है| गेहूं को साफ करते वक्त यह ध्यान रखें गेहूं साबुत होने चाहिए, एक भी टूटा हुआ नहीं रहना चाहिए| गेहूं को अच्छे से साफ करके रख दिया जाता है और जो टूटा हुआ गेहूं का जो भी कचरा होता है उसे एकांत जगह पर रख दिया जाता है| छठ पूजा बीत जाने के बाद उस गेहूं को गाय को खिला दिया जाता है या पंछियों को खिला दिया जाता है|
छठी मैया का पावन व्रत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में किया जाता है| यह व्रत बहुत ही पावन व्रत माना जाता है| यह व्रत 4 दिन का होता है|
पहले दिन का व्रत नहाए खाए होता है– नहाए खाए के दिन पूरे घर की साफ-सफाई की जाती है और स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहन कर सूर्य देवता को जल अर्पण किया जाता है उसके बाद घर के मंदिर में भी पूजन करें पूजन करने के बाद लौकी की सब्जी चना दाल डालकर शुद्ध घी में सेंधा नमक का उपयोग कर बनाएं और अरवा चावल बनाएं भोजन बन जाने के बाद ग्रहण करें|
नहा खा करने के साथ-साथ उसी दिन गेहूं धोकर सुखाया जाता है| गेहूं सुखाते वक्त यह ध्यान रखिए की एक भी पंछी गेहूं के पास भटक ना पाए क्योंकि यह गेहूं छठी मैया और सूर्य भगवान के प्रसाद बनाने के लिए होता है| इस गेहूं को गंगा जल से धोया जाता है और स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहन कर ही धोया जाता है| इस गेहूं को शुद्ध साफ धोती पर पसारा जाता है सूखने के लिए|गेहूं जब तक सुख ना जाए अच्छे से सूख जाने के बाद इसे उठाकर साफ सुरक्षित जगह पर रखा जाता है|
नहा खा के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है– खरना के दिन सुबह से उपवास रखा जाता है निराहार रहकर खरना की सारी तैयारी करनी होती है गेहूं पिसने के लिए दिया जाता है आम के वृक्ष की लकड़ी मंगाई जाती है, खीर के लिए चावल को साफ किया जाता है और चावल के लड्डू के लिए चावल साफ किया जाता है| मिट्टी के चूल्हे बनाए जाते हैं खीर बनाने के लिए और रोटी बनाने के लिए| अब सूर्यास्त होने के 2 घंटे पहले स्नान किया जाता है| कोरा कपड़ा पहना जाता है उसके बाद खरना की तैयारी की जाती है| स्नान करके सबसे पहले सूर्य भगवान को जल अर्पित करें उसके बाद चूल्हा की पूजा करें पीतल के बर्तन में गुड़ और दूध चावल से खीर बनाएं रोटी बनाएं और अब एक छोटे से लोटे में कलश तैयार करें उसमें फूल अक्षत सुपाड़ी डालकर कलावा बांधकर स्थापित करें और उसकी पूजन करें| सिंदूर,धूप,दीप जलाकर हवन करें| अब जो लोग व्रती है वह प्रसाद ग्रहण करेंगे प्रसाद ग्रहण करने के बाद चांद का दर्शन करेंगे और उन्हें प्रणाम करके आकर अपने बड़ों का आशीर्वाद लेंगे उसके बाद घर के सभी सदस्यों और अपने पड़ोसियों में प्रसाद वितरण करें|
आधी रात बीतने के बाद उस जगह की साफ-सफाई करेंगे| पुण: स्नान करके प्रसाद बनाने की तैयारी करेंगे जो पिसे हुए गेहूं से ठेकुआ जिसे खजूर भी कहते हैं शुद्ध घी में तलना है उसके बाद कुटे हुए चावल में शुद्ध घी, गुड, तुलसी-पत्ता और दूध मिलाते हुए लड्डू बनाएंगे| और फल मौसमी फल, टोकरी, गन्ना,मिट्टी का दिया, रूई, सिंदूर, फूल माला, दीप धूपबत्ती,अक्षत मंगा ले और टोकरी में कलसुप साफ करके उसे सजाएं| फूल-फल नारियल धूप दीप सब सजा ले| यह व्रत छठी घाट गंगा किनारे पूजन किया जाता है जाकर डूबते हुए सूर्य को गंगाजल से अर्घ्य दिया जाता है और अगले दिन सूर्योदय यानी कि उगते हुए सूर्य को कच्चे दूध से अर्घ्य दिया जाता है और पूजा की जाती है पूजा संपन्न होने के बाद हवन किया जाता है हवन करके हल्दी और गुड़ खाकर व्रत खोला जाता है|
इस व्रत को सुहागिन स्त्री, दांपत्य जोड़ी, या कुंवारी लड़कियां, कुंवारे लड़के भी कर सकते हैं|
छठ पूजा की सामग्री– नारियल, खजूर अरवा चावल, गुड कल सूप, सुपारी हल्दी, मिट्टी के दीपक, सिंदूर रुई बत्ती, धूप टोकरी, कच्ची हल्दी, कच्चा आदि, अनानास, सेब, गन्ना, बड़ा वाला नींबू , अमरूद ,शकरकंद, केला मूली, कोहड़ा,( सीताफल) फूल
पीतल के बर्तन का ही इस्तेमाल किया जाता है प्रसाद बनाने के लिए
अगर कोई खास मनोकामना पूरी हुई होती है तो लोग कोसी भरते हैं कोसी भरने के लिए हाल सराही हाथी वाले दीपक या कोशी भरने वाला दीपक मार्केट में आपको आसानी से मिल जाएंगे आपके परंपरा के अनुसार जो कोसी भरा जाता हो वही ले |