जितिया व्रत महिलाएं अपने पुत्र,पुत्री के दीर्घायु के लिए करती हैं| अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितीया का व्रत रखा जाता है| यह व्रत सप्तमी तिथि से शुरू होकर नवमी तिथि को खत्म होता है| यह व्रत कठिन व्रतों में से एक है| अपने पुत्र-पुत्री के सुखी जीवन के लिए रखा जाता है|
सप्तमी तिथि को नहा-खा का नियम किया जाता है| नहाए खाए के दिन पहले दो दतवन चिल्हो और सियारों को छत पर या छज्जे पर किसी स्थान पर दे दे| गिलास में पानी दे दे और बोल दे की आप लोग भी दातुन कर ले और तब आप भी दातुन कर ले| और स्नान करके सूर्य देव को जल दिया जाता है| पूजा अर्चना करके तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं- गुजिया,ओल की सब्जी,नोनी सत्पुटिया का सब्जी बनाया जाता है| चावल,मालपुआ,खजूर,नमकीन ,मरुआ की रोटी (का खास नियम है) इत्यादि बनाया जाता है और खाया जाता है| इस व्रत में सरगी का भी नियम है| अष्टमी तिथि के ब्रह्म मुहूर्त में लगभग 2:03 बजे के आसपास चिल्हो सियारों को तोरी के पत्ते पर उनको भी सरगी दिया जाता है|
सरगी में जो आप खाते हैं फल या भोजन केला,दूध,खजूर,सरगी के रूप में आप मीठा भोजन ही खाइए| ज्यादा तेल मसाला वाले भोजन ग्रहण ना करेंजो भी आप खाते हैं उनको देखकर उसके बाद खाया जाता है तथा अष्टमी तिथि को निर्जल उपवास रखा जाता है| प्रातः काल उठकर किसी जलाशय में या नदी में स्नान करते हैं| स्वच्छ शुद्ध पिला या लाल कपड़ा पहने पर याद रहे कि मुंह में कुछ लगाना नहीं है कुछ भी नहीं यहां तक की दातुन या कुछ से ब्रश भी नहीं करना है मुंह धोना ही नहीं है सिर्फ नहाने के टाइम स्नान करने वक्त खुल्ला करेंगे बस और पूजा प्रदोष काल में की जाती है| मिट्टी या गोबर से लौ-कुश और जीवित्पुत्रिका पूजन,धूप,दीप,फल,फूल,नैवेद्य ,रोली,मोली,अक्षत इत्यादि चढ़ाकर के पूजा की जाती है| धूप-दीप जलाया जाता है और लाल धागे से बनी माला को पूजा में चढ़ाया जाता है और कथा सुना जाता है| पंडित जी को दान दक्षिणा दिया जाता है और घर आने के बाद सबसे पहले अपने बड़े पुत्र या पुत्री को जितिया माला पहनाया जाता है| उसके बाद छोटे पुत्र-पुत्री को बनाया जाता है उसके बाद माता स्वयं अपने गले में धारण करती है| आप अपने परंपरा अनुसार अपने बुजुर्गों से पूछ कर भी व्रत करें अगर आप पहली बार व्रत कर रहे हैं तो अगले दिन स्नान आदि करके पूजा पाठ किया जाता है| सूर्य भगवान को जल देने के बाद इस व्रत का पारण किया जाता है| इस व्रत के तीसरे दिन नवमी को पारण किया जाता है| कढ़ी,चावल, सब्जी, पकोड़े आदि बनाए जाते हैं और खाया जाता है|
यदि आप सामूहिक रूप से पूजा करने नहीं जा पा रहे हैं तो – एक लोटे का कलश रखें कलश में आम का पत्ता उसके ऊपर चावल और कलश के अंदर पान-सुपारी एक सिक्का जरूर डालें| कलश के ऊपर एक दीपक रखें| एक पान के पत्ते पर दो सुपारी रखे चिल्हो सियारो के रूप मे जिउत्वाह्न को कुश के रूप मैं बना लेंगे| एक नया वस्त्र चढ़ाएं कलश को स्नान कराएं और सभी देवता का आवाहन करें| रोली सिंदूर लगाएंगे, पुष्प अर्पित करेंगे, फूल हार चढ़ाएंगे, दीपक जलाएं, धूपबत्ती जलाएं, भोग प्रसाद चढ़ाएं, पूजा संपन्न करें और अपने पुत्र-पुत्री के लंबी उम्र तथा सुखी रहने का प्रार्थना करें| एक वस्त्र चढ़ाएं चीलों सियारों को कथा सुने सुनाएं और अंत में क्षमा प्रार्थना करें पूजा में हुए भूल चूक क्षमा करें जुतबंधन गोसाई|
जिनकी सांस नहीं होती हैं उन्हें नहा-खा के दिन दान करना है नहा खा करने वाले सारी सामग्री जैसे- अरहर का दाल, मडुवे का आटा, सब्जी इन सब चीजों का दान करना है किसी पंडित को| और जिनकी सासू मां है वह दान नहीं करती हैं सिर्फ नहा खा कर नियम करें और पारण करने से पहले दान का सामान निकाले और दान करें और पारण के दिन पूजा अर्चना करने के बाद कच्चा दूध और तुलसी का पत्ता पहले सेवन करें इसी से व्रत खोलें उसके बाद भोजन ग्रहण करे|